Tuesday, April 12, 2011

तुम कभी मुझे मत मिलना


तुम कभी मुझे मत मिलना
हो सके तो
बस खत लिखना

कुछ भी लिखना
उम्मीदें, आशाएं और मुस्कुराहटें लिखना
कुछ दर्द, कुछ शिकवे, बेशक अपने आंसू भी तुम लिखना पर अपनी यादें मत लिखना


कुछ भी लिखना
सपनों को लिखना,
अपनों को लिखना
मौसम की करवटें
और जिंदगी में फैले रंगों को भी
तुम लिखना
पर अपनी यादें मत लिखना

कुछ भी लिखना
अपने इर्द-गिर्द तैरते
चेहरों को लिखना
अखबारों की सुर्खियों
में लिपटी ख़बरों को
भी तुम लिखना
पर अपनी यादें मत लिखना


लेकिन मैं जानता हूँ
तुम भी लिखोगी मेरी तरह
अपनी यादें
जैसे मेरी कलम
उतर गई है यादों
के गलियारों में
और शब्दों के गीलेपन
के पीछे मेरी भीगी पलकें
देख रही हैं
तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा चेहरा

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